Crude Oil touch ground hit by Corona | कच्चे तेल पर कोरोना कहर , पहली बार कीमत जीरो से नीचे

Darshan Singh
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कच्चे तेल  में इतिहासिक गिरावट,पानी की  बोतल से भी हुआ सस्ता।   Crude Oil touch ground hit by Corona .

 

कोरोना वायरस ने दुनियाभर के वाहन सड़को से हटाकर गरेजो में खड़े कर दिए हैं , सभी तरह के इंडस्ट्री बंद पड़ी हैं जिसके कारण पेट्रोल और डीजल की मांग शून्य पर पहुँच गयी हैं इसलिए 20 अप्रैल को न्यूयॉर्क ऑयल मार्केट में कोहराम देखने को मिला जहाँ पर  तेल की कीमतें इतनी गिरी की कच्चा तेल एक बोतल पानी से भी सस्ता हो गया.यह कीमते  मई महीने में की जाने वाली सप्लाई के लिए है। कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण की वजह से कच्चे तेल की कीमतें भरभराकर गिर पड़ी हैं. न्यूयॉर्क में कच्चे तेल की कीमतों में अभी तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है



मई के लिए सप्लाई की जाने वाली तेल की कीमतें एक समय गिरकर 1.50 डॉलर प्रति बैरल हो गयी यह गिरावट ययूएस बेंचमार्क में रिकॉर्ड की गयी यह क्रूड आयल की एकदिन में 90 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज़ हुई है।  जो कच्चे तेल की खरीदारी मई महीने के लिए होनी है उसकी अंतिम तिथि 21 अप्रैल है लेकिन आयल प्रोडूसर को खरीददार नहीं मिल रहे हैं क्योंकि  दुनिया भर के वाहन चल नहीं रहे और फैक्ट्रिया बंद पड़ी हैं तेल की खपत ही नहीं है।  
पिछले कुछ ट्रेडिंग सेशन के दौरान बाजार में  कीमतें गिरती रही हैं  जो सोमवार को न्यूयॉर्क में यूएस बेंचमार्क वेस्ट टेक्सॉस इंटरमीडिएट में मई के लिए कच्चे तेल के ठेके में 301.97 फीसदी की गिरावट दर्ज़ हुई और ये -36.90 डॉलर प्रति बैरल पर आकर रूका। गौरतलब हो कि  मई महीने में सप्लाई की जाने वाली कच्चे तेल की कीमतें अधिकत्तम 17.85 डॉलर प्रति बैरल और न्यूनत्तम -37.63 डॉलर प्रति बैरल रही।   आखिरकार बाजार-37.63 डॉलर प्रति बैरल पर आकर बंद हुआ,  ये इतिहास में पहली बार हुआ है जब न्यूयॉर्क में कच्चे तेल की कीमतें निगेटिव में चली गई हैं। जानकारों का मानना है कि कीमते नेगेटिव में इसलिए गयी क्योंकि उत्पादन अधिक होने के कारण तेल कम्पनियो के पास भंडारण की जगह नहीं बची हुई है। तेल विक्रेता दुनिया के देशों से तेल खरीदने के लिए कह रहे हैं लेकिन तेल खर्च करने वाले देशों को इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि उनकी अरबों की आबादी घरों में बैठी है लिहाजा वे तेल नहीं खरीद रहे हैं।   उनका तेल भंडार भरा हुआ है, पुराना तेल खर्च न होने से उनके पास नया तेल स्टोर करने के लिए जगह नहीं है. इसलिए वे तेल नहीं खरीद रहे हैं चीन और  भारत जैसे देश इस समय  भुना  सकते हैं अपने सभी स्टोरेज कैपेसिटी को फुल भर कर आने वाले दिनों में ज्यादा कीमतों में तेल खरीदने से बच सकते हैं।


अमेरिका  कनाडा में कच्चा तेल शून्य डॉलर से भी नीचे! भारत के लिए क्यों है चिंताजनक

जबकि अमे​रिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट मार्केट में कच्चा तेल मई के वायदा सौदों के लिए सोमवार को गिरते गिरते  -37.63 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया।   दुनियाभर में चल रहे लॉकडाउन के कारण जिन कारोबारियों ने मई के लिए वायदा सौदे किए हैं वे अब इसे लेने को तैयार नहीं हैं क्योंकि मार्च के दूसरे सप्ताह से अप्रैल के अंत तक सभी जगह तेल की खपत 95 प्रतिशत से ज्यादा गिर  अभी तक  मार्च  और अप्रैल का स्टॉक भी ख़त्म नहीं हुआ है , इसलिए मई के   खरीदार नहीं मिल रहा है हालाँकि कच्चे तेल की यह गिरावट दुनिया सहित भारत की इकोनॉमी के लिए भी कोई अच्छी खबर नहीं है। 
भारत में कच्चे तेल की ज्यादा तर खरीदारी लंदन का ब्रेंट क्रूड की हिसाब से होती है।  जिसके रेट अमेरिकी ब्रेंट से अलग बने हुए है. 

अब इस बात को समझना जरूरी है कि वैसे अमेरिकी बाजार में कच्चा तेल अगर मुफ्त भी हो जाता है तो पेट्रोलियम कीमतों के लिहाज से भारत को बहुत फर्क क्यों नहीं पड़ता।  असल में भारत में जो तेल आता है वह लंदन और खाड़ी देशों का एक मिश्रित पैकेज होता है जिसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं. इंडियन क्रूड बास्केट में करीब 80 फीसदी हिस्सा ओपेक देशों का और बाकी लंदन ब्रेंट क्रूड तथा अन्य का होता है. यही नहीं दुनिया के करीब 75 फसदी तेल डिमांड का रेट ब्रेंट क्रूड से तय होता है।  यानी भारत के लिए ब्रेंट क्रूड का रेट महत्व रखता है, अमेरिकी क्रूड का नहीं। और भारत के लिए कच्चा तेल अभी अभी19  डॉलर प्रति बैरल के करीब बना हुआ है।  


डब्लूटीआई वह क्रूड ऑयल होता है, जिसे अमेरिका के कुंओं से निकाला जाता है, lलेकिन ढुलाई के लिहाज से इसे भारत लाना आसान नहीं होता। और सबसे अच्छी क्वालिटी का कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड माना जाता है. दूसरी तरफ, खाड़ी देशों का यानी दुबई/ओमार क्रूड ऑयल थोड़ी हल्की क्वालिटी का होता है, लेकिन यह एशियाई बाजारों में काफी लोकप्रिय है क्योंकि इसको भारत लाना काफी सस्ता पड़ता है। ब्रेंट क्रूड और WTI क्रूड की कीमत में अक्सर कम से कम 10 डॉलर प्रति बैरल का अंतर देखा जाता रहा है. इस कीमत पर ओपेक देशों का काफी असर होता है.

भारत में इस तरह तय होती हैं  पेट्रो​लियम की कीमत 


जब भी कच्चा तेल गिरता है तो तमाम तरफ यह शोर मचने लगता है कि पेट्रोल-डीजल के रेट कम क्यों नहीं हो रहे. असल में भारत में पेट्रोल-डीजल के रेट क्रूड के ऊपर नीचे जाने से तय नहीं होते. पेट्रोलियम कंपनियां हर दिन दुनिया में पेट्रोल-डीजल का एवरेज रेट देखती हैं. यहां कई तरह के केंद्र और राज्य के टैक्स निश्चित हैं. भारतीय बॉस्केट के क्रूड रेट, अपने बहीखाते, पेट्रोलियम-डीजल के औसत इंटरनेशनल रेट आदि को ध्यान में रखते हुए पेट्रोलियम कंपनियां तेल का रेट तय करती हैं. इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का हमारे यहां पेट्रोल-डीजल की कीमत पर तत्काल असर नहीं होता , इसका असर अगले महीने में दीखता है वो भी आंशिक।  

खाड़ी देशो में काम करने वाले भारतीयों की जा सकती है नौकरी 


आयल एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि भारत या दुनिया की इकोनॉमी के लिए यह कोई शुभ संकेत नहीं है. क्योंकि कोरोना संकट की वजह से दुनिया की इकोनॉमी पस्त है. भारत में भी लॉकडाउन की वजह से पेट्रोलियम की मांग में भारी गिरावट आई है. ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों का लगातार घटते जाना और इस स्तर पर चले जाना खाड़ी देशों की इकोनॉमी के डांवाडोल हो जाने का खतरा पैदा करता है. खाड़ी देशों की इकोनॉमी पूरी तरह से तेल पर निर्भर है. वहां करीब 80 लाख भारतीय काम करते हैं जो हर साल करीब 50 अरब डॉलर की रकम भारत भेजते हैं. वहां की इकोनॉमी गड़बड़ होने का मतलब है इस रोजगार पर संकट आना। 

  

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